गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

चर्चा चुगली-गेहूं की फसल में मांसाहारी कीट- कराइसोपा






कराईसोपा को एक महत्वपूर्ण कीटखोर कीट माना जाता है। इसे हमारी फसलों को हानि पहुँचाने वाले नर्म देह कीड़ों का प्रमुख प्राकृतिक शत्रु  माना जाता है। आमतौर पर इस कीट के प्रौढ़ रात को ही सक्रिय रहते हैं।  रात को रोशनी पर आकर्षित होना इनके स्वभाव में शुमार होता है। हल्कि-हरी झिल्लीदार पंखों वाला यह  कराईसोपा का प्रौढ़ नरम देह प्राणी होता हैं।  इसकी धारीदार पारदर्शी पंखों से इसका पतला सा तोतिया रंगी शरीर साफ नजर आता है। कराईसोपा की कुछ प्रजातियों के प्रौढ़ तो मांसाहारी होते हैं जबकि अन्य के परागकण,मधुरस व नैक्टर आदि पर गुजारा करते हैं। कराईसोपा की सभी प्रजातियों के डिंबक मांसाहारी होते हैं। इस कीड़े की मांसाहारी प्रजातियों के प्रौढ़ व सभी प्रजातियों के डिंबक (शिशु) सफेद-मक्खी, तेला, चेपा, चुरड़ा व मिलीबग आदि हानिकारक कीड़ों के प्रौढ़ों व बच्चों को खाकर जिंदा रहते हैं। ये  कीड़े भाँत-भाँत की तरुण सूंडियों का भी भक्षण करते हैं इस कीट की सिवासण मादाएं प्रजाति अनुसार एक-एक करके या गुच्छों में 600 से 800 तक डंठलदार अंडे देती हैं। अन्य कीटखोरों का शिकार होने से बचने के लिये ही ये अंडे बहुत ही महिन सफेद रंग के रेशमी से डंठलों पर रखे जाते हैँ। अंडों का रंग शुरु में पीला-हरा होता है जो बाद में सफेद तथा फूटने से पहले काला हो जाता है। चार दिन में ही इन अंडों से कराईसोपा के डिंबक निकल आते हैं। ये डिंबक अपने जीवन काल में तीन बार कांजली उतारते हैं। इनके शरीर की लम्बाई 3 से 20 मि.मी. तथा रंग मटमैला-पीला जिसके ऊपर गहरी धारियां भी होती हैं। कराईसोपा के ये डिंबक देखने में तो ऐसे  दिखाई देते हैं जैसे कोई मिनी-मगरमच्छ  हो। इनके जबड़े देखने में दरांतियों जैसे होते हैं। शिकार का खून चूसने के लिये इन जबड़ों की बदौलत ही शिकार के शरीर में सुराख किया जाता है।

इन डिंबकों के भोजन में गजब की विविधता होती है। एक तरफ तो इनके भोजन में मिलीबग, तेले, सफेद-मक्खी, चुरड़े, चेपे व मकड़िया जूँ आदि छोटे-छोटे  कीट होते हैं तथा दूसरी तरफ भांत-भांत की तरुण सूंडियां व विभिन्न कीटों के अंडे भी इनके भोजन में शामिल होते हैं। इनकी यह डिंबकिय अवस्था 15 से 20 दिन की होती है। अपने इस दो-तीन सप्ताह के जीवनकाल में ये डिंबक 100 से 600 तक चेपे(अल) डकार जाते हैं। चेपे खाने के मामले में पेटू  होने के कारण ही शायद इन्हें चेपों का शेर कहा जाता बै। कराईसोपा की प्यूपेसन गोलाकार रेशमी ककून में होती है। कोकून काल 10 से 12 दिन का होता है।




































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