गुरुवार, 1 जुलाई 2010

हट जा ताऊ पाछै नै


हरियाणवी युवा भ्रम की स्थिति में
डॉ. देवव्रत सिंह,
ऐसोशिएट प्रोफेसर
जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान
कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र
मोबाइल – 0946677499

हट जा ताऊ पाछै नै, नाचण दे जीभर कै नै – ये गीत पिछले दिनों युवाओं में काफी लोकप्रिय हुआ। पुरानी पीढ़ी को पीछे धकेलते युवा जब इस गीत पर धमाल मचाते हैं तो उन्हें लगता है कि वे पुरानी सांस्कृतिक उलझनों को पीछे छोड़ खुल कर जी रहे हैं। नई पीढ़ी की ऊर्जा और जोश को प्रकट होने का मानों एक बहाना मिल गया। लेकिन युवाओं की ये स्वछंद मस्ती दूसरे ही पल हवा भी हो जाती है और बेरोजगारी के भंवर में उलझते युवा घोर निराश, हताश और उदास भी प्रतीत होते हैं। हरियाणवी युवाओं की ये दो सरासर विपरीत मनोवृत्तियां समझने में थोड़ जटिल दिखती हैं।  
दरअसल संपन्नता के बावजूद हरियाणवी युवा एक सांस्कृतिक और नैतिक भ्रम के चौराहे पर खड़ा है। सांस्कृतिक संकट के इस दौर में सही और गलत के बीच की दीवार महीन हो चली है। युवाओं ने पुराने आदर्शों को पिछड़ा समझ कर छोड़ दिया है लेकिन नये आदर्शों की तस्वीर अभी साफ नहीं है। बाज़ार ने तो बस एक मंत्र दिया है सफलता की कुंजी अमीरी में छुपी है। इसलिये झटपट पैसे कमाने की जुगत भिड़ाओ। धन कमाने के साधन गलत हों या सही। अमीर बनने के बाद समाज आपको सम्मान देगा। पोपूलर मीडिया की चकाचौंध में रातों-रात फिल्मी अंदाज में अमीर बनने का चस्का युवाओं को अपराध की तरफ धकेल रहा है।
पिछले दस सालों में जमीनों के बेतरतीब भाव बढ़ने से एकाएक नवधनिक किसान का उदय हुआ है जो तेज़ी से समाज में अपनी पहचान बनाना चाहता है। पिछले दिनों एक अमेरीकी ब्रांड के कार शोरूम के मालिक ने बताया कि उनकी बड़ी गाडियों के अधिकांश खरीददार शहरी नहीं ग्रामीण किसान हैं। 15 से 20 लाख कीमत की इन लग्जरी गाडियां लोन से नहीं कैश देकर खरीदी जा रही हैं। और सबसे रोचक बात ये भी कि ये कारें किसान अपने बेटों के दबाव में खरीद रहे हैं। ये अमीर युवा इनके असली चलाने वाले भी हैं। दरअसल, ग्रामीण परिवेश तेजी से नया आकार ले रहा है। अब पैसा होना ही नहीं दिखना भी चाहिए और बेहतर तो ये है कि जितना है उससे अधिक दिखना चाहिए। सादगी पसंद हरियाणा के लोगों ने इससे पहले कभी अपनी कोठियों, गाड़ियों, कपड़ों और आयोजनों में अश्लीलता की हद तक दिखावे पर इतना खर्च नहीं किया जितना अब हो रहा है।
लिंग अनुपात बिगड़ने के कारण युवाओं की शादी में देरी अब आम हो चुका है। हरियाणा के गांवों में कुंवारे लड़कों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में बेरोजगार-पढ़ेलिखे-कुंवारों की ये फौज किसी रचनात्मक कार्य की बजाए उत्पाती बन जाए तो ये अस्वाभाविक नहीं कहा जाएगा। ग्रामीण अंचलों में दलित और पिछड़े परिवारों के युवा तेजी से मेहनत के बल पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि पुश्तैनी जमीनदार परिवारों के नौजवान अपने बाप-दादा की जायदाद पर ठाटबाट करने और गांव में रौब कायम करने में मशगूल हैं। गरीब परिवारों की निरंतर बेहतर होती आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक स्थिति को प्रभावशाली जाति के लोगों पचा नहीं पा रहे। सहनशीलता की कमी और इससे पैदा हुई सामूहिक ईर्ष्या मिर्चपुर जैसे जातीय तनाव का कारण बन रही हैं। 
हरियाणवी समाज सदियों से अपने बिंदास और बेधड़क सांस्कृतिक माहौल के लिए जाना जाता है। बदले सांस्कृतिक माहौल के बीच प्यार-मौहब्बत में भी युवा असमंजस की स्थिति में देखे जा सकते हैं। पुराने सामाजिक बंधन, नैतिकता और दबाव कमज़ोर हो गये हैं। पुरानी और नई पीढ़ी के बीच के तार टूट रहे हैं। नये आदर्श अभी आकार ले रहे हैं। ऐसे में हरियाणा के सामाजिक जीवन में एक अफरातफरी की स्थिति महसूस की जा सकती है।
हरियाणा अपने जुझारूपन और मेहनत के लिए जाना जाता रहा है लेकिन मेहनत के प्रति नयी पीढ़ी का नजरिया किसी को भी चौंका सकता है। खेतों में अब पूर्व से आये मज़दूर काम करते हैं। युवा मानते हैं कि जिस नौकरी में कम मेहनत और मोटी तनख्वाह है वही सबसे अच्छी है। तकनीकी प्रगति के बावजूद शारीरिक हो या फिर बौद्धिक, कठोर मेहनत के बिना कोई भी पीढ़ी सफलता के चरम पर किसी शोर्टकट के जरिये नहीं पहुंच सकती। नौकरी का बाज़ार अब खुल चुका है। गुणवत्ता और मेहनत के आधार पर आप किसी भी राज्य या देश में नौकरी हासिल कर सकते हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में आप कहां खड़े हैं। बदली परिस्थितियां शानदार अवसर उपलब्ध कराती हैं तो ये अभिशाप भी बन सकती हैं। किसी पीढ़ी का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि लक्ष्य क्या है, उसे हासिल करने की तैयारी कितनी है और वो निरंतर नवीन परिस्थितियों से किस तरह से पेश आती है।