शनिवार, 11 अप्रैल 2009

चर्चा चुगली !

तना छेदक से प्रकोपित पौधे जिनकी बाल सूखी व पत्ताका पत्ते हरे।



समय: हाँडीवार।
स्थान: मलिक पिग्गरी फार्म,निडाना।
पात्र: रतना काला,बसाऊ अर् बागा । आख़िर में नरेंद्र बच्ची भी आग्या।
बसाऊ- रतने,के बात। इब कृषि विभाग अर् कृषि ज्ञान केन्द्र आले तनै किसे भी कार्यकर्म में नहीं बुलाते? मेरा ख्याल सै तनै वे प्रगतिशील की बजाय खूँटा ठोक समझन लाग लिए।
रतन-फेर मैं कद उनकी भातियाँ की ढाल बाट..........
"यू कौन सा चौधर का सवाल सै?"- बीच में ही बागे नै बात घुमाई अक् मनै न्यूँ बता गेहूं किसेक लिकडे।
रतन- पिच्पन मन की औसत आई सै।
"अँ! इतने! तेरे गेहुआं में तो शुरू में भी सुंडी थी अर् आख़िर में भी। इसके अलावा अल भी था। तनै किसे कीटनाशक का स्प्रे भी नहीं करया। फेर भी या कुदरत तेरे ऊपर मेहरबान क्यूकर हुई?"- बागे नै आश्चर्य से पूछा।
रतन- थारै जै याद हो तो अपने गाम का ज्ञानी पागलां की तरिया एक ही बात बार-बार कहें जाया करदा। "जी का जी बैरी अर् मक्खी का घी बैरी॥" इब मेरे या बात सौ की सौ जचन लागी।
बसाऊ- तेरी इस बात में दम सै। मनै ख़ुद अपनी आँख्यां तै लेडी बीटल अर् इसके बच्चे गेहूँ की फसल में अल/चेपा खाते देखे।छोटी छोटी सुंडी अर् अंडे खाते देखे। सिरफडो अर् कराइसोपा के बच्चे अल नै चेपते देखे। और तो और मनै तो इबकै यू चेपा रोग लाग़ कै मरते हुए भी देखा। सफ़ेद सी फफूंद थी जो इस चेपे नै बिलोवै थी। जै खुदा नै खास्ता किसानां नै इन लाभदायक कीड़ों की पहचान हो जा तो कुछ बात बनै।
रतन- बसाऊ। बात तो पूरी भी बन सकै सै जै सही पहचान के साथ साथ हमारा नजरिया भी सही हो तो। इबकै तो गेहूँ की फसल में शुरू तै ऐ सुंडी बैठी सै। या सुंडी धान की तना छेदक सुंडी सै। ललित खेडा वाले तो बल्कि न्यूँ भी कह थे अक् जीरो टिलेज मशीन के प्रचलन कै साथ ही गेहूं में इस कीड़े की शुरुआत हुई सै। राम जानै।कै यूनिवर्सिटी आले जानै। शुरुआत में सुंडी आने के कारण अबकी बार गेहूं नै खूब फूट करी। शुरुआत में कंसुआ लगने पर ईंख भी खूब फूट करा करदा।
बागा बीच में टपका- आ। शुरू में आ जा तो ठीक। पर या फुफनी तो आख़िर तक गडै थी। इस टेम बता या कुणसी फूट करवावैगी?
रतन- इस टेम भी अबकी बार एक नई बात देखन में आई। बालियों की अवस्था में इस तना छेदक का हमला होने पर प्रकोपित टहनी व बाली ही सूखते हैं। सबसे ऊपरवाला पत्ता जिसे हम पत्ताका पत्ता कहते,हरा ही बना रहता है। इसमें बनने वाला भोजन भावी पीढी के लिए विकसित हो रहे दानों में संग्रहित होने के लिए होता है। अत: बालीविहीन इस पत्ताका पत्ते में बना भोजन,पौधे की दूसरी टहनियों की बालियों के दानों में संग्रहित हो जाता। इसका मतलब शेष रहे दानों का वजन बढ जाता है।
इसलिए बागे अर् बसाऊ, डोले पे खड़ा होकै, सूखी बाली देख टोटा फलान का नजरिया इस देश में कीटनाशक कम्पनियाँ अर् डीलरां कै काम आवैगा।
नरेंद्र बच्ची- काका रतने, कदे तो गाम कै गोरे की भी बतला लिया कर। सारी हाण प्रकृति में द्वंद्व ढुँढन ना लागा रहा कर। लाग लपट कै, एक बै तो इन कीड़ों की पहचान ही करवादो किसानां नै।

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