शुक्रवार, 27 मार्च 2009

बी.टी.का ब्याह !

चैत की चौदस का चाँद पूर्वी आसमान में डिग्गी से ऊपर चढ लिया था। पर मलिक पिग्गरी फार्म में अपने पशुओं के रुखाली रतने का टेम पास होने का नाम नही ले रहा था। रतन की गिनती गाम के पुराने पापियाँ में हो सै। उन्निसौ तिएतर का बी.ए. पास सै। एक योजना गाम का सरपंच भी रह लिया। कृषि विभाग अर विज्ञान केन्द्र आला की नजर में प्रगतिशील किसान भी रह लिया। रतन की इस खास पहचान में गुणों पर रंग हमेशा भारी पड़ता रहा। इसीलिए तो गाम का चूची बच्चा भी रतन को रत्ना काले के रूप में जानता है। तीव्र रंग विरोधाभास के कारण ही आज बसाऊ अर बागे पंडित नै रत्ना काला रिंग बाँध पर तै दिखाई दे गया। अपने यारों के कदमों की आहट से उर्जावान व चाँद की मार्फत मिली सूरज की रश्मियों से दैदीप्मान रत्ना काला तुर्ताफुर्ती कमरे में गया और अगले ही क्षण हाथ में कुछ लिए वापिस चारपाई पर जम गया। जब तक भूतपूर्व सरपंच बसाऊ व भावी सरपंच बागा रतन के पास पहुचते,वह लालपरी को तिन गिलासों में डाल चुका था। ना दुआ सलाम अर ना उलाहना-मीणा। बस तीनों ने चुपचाप गिलास उठाकर आपस में टकराए। एक साथ चियर्स कह कर चुपी तोड़ने का सामूहिक रूप से सार्थक प्रयास किया। पुरा पैग हल्क में तार,रतने नै पूछा आज दिन में कित गडो थे? "आज तो, जींद उत्सव होटल में थे। बी.टी.का ब्याह था। कम्पनियों के क्षेत्रीय प्रबंधकों ने बिटिया बी.टी.की शादी जींद आकर करी सै। रिसेप्सन का सारा खर्चा कृषि विभाग नै ठा राख्या था। नौन्दा-निंधारी विभाग के कर्मचारी अर जिले के प्रगतिशील किसान थे। खाना के गजब......"
"कदे? काम की भी बतला लिया कर, " रतने नै बागे को बीच में ही टोका था।
बसाऊ पै भी चुप नहीं रहा गया, "और तो किम्में बात नहीं रतने, बीज आधुनिक, कंपनी आधुनिक, तकनीक आधुनिक, ब्याह करनीयें आधुनिक पर परम्परा पुराणी। दुल्हन बी.टी.स्टेज पर घूँघट काढ कै बिठा राखी थी। बी.टी.का परदे में रहना कानूनी रूप में लाजिमी बतावै थे। कानून भी कोई इ.पी.ए.1986 बतावैं थे। परम्परा और पैदावार का यु अंतरविरोध, म्हारै हज़म नहीं होया।"
रतना - " फेर तो जरुर किम्में रोल सै? इसपै किम्में सवाल-जवाब नहीं होए।"
बागा - "खूब होए, होए क्यूँ नहीं?

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