मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

निडाना गावं में दो दर्जन कृषि अधिकारियों का दौरा

आज दिनांक २९/१२/०९ को निडाना गावं में दो दर्जन कृषि अधिकारियों ने निडाना गाम का दौरा किया कृषि अधिकारियों का गाम में यह दौरा संसाधन मैपिंग व् महिला सशक्तिकरण को लेकर था यह बात आज यहाँ प्रैस के नाम एक विज्ञप्ति जरी करते हुए निडाना गाँव के भू।पु.सरपंच व् प्रगतिशील किसान रत्तन सिंह ने बताई सुबह १०:४० बजे कृषि विकास अधिकारी के कार्यालय में इन कृषि अधिकारियों का गाँव के किसानों द्वारा स्वागत किया गया डा.राजेश लाठर व् डा सुभाष ने कृषि विभाग के इन मंडल व् खंड स्तरीय अधिकारियों का परिचय कटवाया तथा गाँव में आणे का उद्देश्य बताया रणबीर सिंह व् मनबीर सिंह की अगुवाई में किसानों ने इन अधिकारियों को इस गाँव में पाए जाणे वाले कीड़ों से सम्बंधित प्रदर्शनी दिखाई उन्होंने मेहमानों को बताया कि दुनियां में मिलीबग नियंत्रण पर बनी कुल अठ्ठारह वीडियो फिल्मों में से ग्यारह इस गाँव के किसानों द्वारा तैयार की गई हैं इंटर-नेट पर लोड हमारी इन फिल्मों को को दुनिया भर में बारह हजार बार से ज्यादा देखा जा चूका है तथा इन किसानों द्वारा पकडे गये कीटों के फोटुओं को दुनिया में इंटर-नैट पर दो हज़ार से ज्यादा लोग देख चुके हैं. उन्होंने मेहमानों को यह भी बताया कि खरीफ के सीजन में कपास की फसल पर इस गाँव में किसानों की सक्रिय भागेदारी से चली "अपना खेत-अपनी पाठशाला के सभी सत्रों की कारवाही को इसी नाम से ब्लागिंग की गई है इसके पश्चात् डा.सुभाष ने इन कृषि अधिकारियों के दो समूह बनाये एक समूह गाँव की अन्दरली चौपाल में महिलाओं से बातचीत करने रवाना हुआ तथा दूसरा समूह यहाँ ब्रह्मणों वाली निर्माणाधीन चौपाल में पुरुषों से बातचीत के लिया रुका दुसरे समूह में डा.राजेश लाठर ने संसाधन मैपिंग के लिए किसानों को उकसाया देखते-देखते ही किसानों ने इस गाँव का नक्शा माय खेतों व् रास्तों के धरती के सिने पर उकेर दिया गाँव के नक़्शे में चिकित्शालय, पशु हस्पताल, पानी की डिग्गी व् स्कूलों को भी नक़्शे में चिन्हित किया तथा इनकी वस्तुगत स्थिति से आगुन्तुक अधिकारियों को परिचित करवाया गावं में साझले कार्यों की चर्चा चलने पर महाबीर की नाराजगी देखते ही बनती थी शायद उसके घर के आगे खैंचा इसकी पृष्ठ भूमि में अपना कार्य कर रहा था गाँव में बोई जाणे वाली फसलों, नहरी पानी की स्थिति, पिने के पानी की स्थिति व् गाँव में ट्रैक्टरों व् मशीनरी की स्थिति पर किसानों व् अधिकारियों के मध्य सूचनाओं का अच्छा-खासा आदान-प्रदान हुआ महाबीर, बसाऊ, रत्तन, मनबीर, संदीप, नरेश, कप्तान, रमेश व् चंद्रपाल ने इस कार्यकर्म में बढचढ कर हिस्सेदारी कीगाँव की अन्दरली चौपाल में समेकित महिला एवं बाल विकास विभाग की सुपरवाईजर के नेत्रित्व में पच्चास से ज्यादा महिलाओं ने तिन घंटे तक इन बिन्दुओं पर खुल कर चर्चा की अंत में डा.सुभाष ने इस प्रोग्राम के आयोजन व् बेहतर सञ्चालन के लिए गाँव के किसानों व् निडाना के कृषि विकास अधिकारी डा.सुरेन्द्र दलाल का थ दिल से शुक्रिया अदा किया किसानों की तरफ से रत्तन सिंह इस प्रोग्राम में पधारने के लिए धन्वाद करते हुए इस गाँव में दोबारा पधारने की अपील की

रविवार, 19 अप्रैल 2009

पिग्गरी फार्म पै शाकाहारी बीटल

बसाऊ अर् बागे नै गेहूं ठा लिए थे। तुड़ी घरां ढोली थी। आज इलेक्सन आल्याँ नै भी जीप कोन्या भेजी। गाम में, इन शेरां का टेम काटें नही कटै था। दोपहर भी नही ढलन दी, चल दिए मलिक पिग्गरी फार्म पै। इनको गैरटेम फार्म पर आते देख, नरेंद्र बच्ची कै शक होया अक् इस टेम तो ये जरूर काम की बतलावगें। गेहूं काटना छोड़, अपने बाबु तै न्यूं बोल्या, "बाबु, मेरे पेट में तो घरड-फरड होण लाग री सै। एक बै जंगल-पानी जाया ऊ। "
"इसकै आगै किसकी बसावै, बेटा। तोला मरले, कदे राह में ऐ डोब दे। " -
बच्ची कै बाबु नै इजाजत देन में जमां ऐ हाण नहीं लाई।
चस्का इसी ये चीज हो सै, बच्ची भी बसाऊ अर् बागे की गेल्याँ ऐ कमरे में दाखिल होया। इस टेम पै साँझ के कमांडरां नै फार्म पर देख, रतन न्यूं कहन लगा, " आऔ। आज इस टेम पर न्यूं क्यूकर ? आज तो गजब होग्या। काना सुनी अर् आँख्याँ देखी बात आज झूठ होती देखी। कान-झूठे, आँख-झूठी, ट्रेनिंग-झूठी, अर् कृषि विभाग आले झूठे। सब इस बात के गवाह थे अक् लेडी बीटल मांसाहारी कीट होते हैं। पर आऔ इस अक्संड पर देखो यू लेडी बीटल के करन लग रहा। ध्यान तै देखो ! लगरया सै इसके हाड्डा में बैठन। माँ-बेटां नै सारे पत्ते खुरच-खुरच कै खा लिए। यें इसके अंडे रहे।



यु रहा इसका गर्ब अर् यू इसका प्यूपा। इब थाम बतावो झूठी होण में के कसर रहगी।"
बसाऊ - " रतने तेरी बात में दम तो दिखै सै। इस प्रौढ नै ध्यान तै देखो। वही सूरत, वही आकार,वही जोगिया रंग की पंख तथा इन पर वही काले टिक्के पर यू के इसकी पंखों में मनियारी की चूडियाँ आली चमक तो कोण।

इसके अंडे, इसके गर्ब तथा इसके प्यूपा नै दोबारा गौर से देखो। मनै तो इब कुछ फर्क सा दिखन लागा। इसका मतलब सारे बीटल लेडी बीटल नहीं होते। कुछ बीटल तो पौधों के हाड़्डां में बैठ्नीयें भी हों सै - हाड़्डा बीटल "
"ठीक बोल्या काका। म्हारा अंग्रेज़ी आला मास्टर भी सातवीं क्लास में न्यूं पढाया करता कि हर लेडी तो महिला होती है पर हर महिला लेडी नहीं होती। इसलिए मेरे तो तेरी हाड़्डा बीटल आली बात जच्ची। "- बीच में ऐ बच्ची नै अपनी नारेंद्र्ता दिखाई।
रतन - बात तो थारी राह लागदी सै। पर यू बागा आज जमां ऐ नी चुस्कदा।
बागा - मैं तो चुनाव मैं वोटर की तरियाँ बिचल कै खड़ा होगा। पुरी तस्सली करके थारी बात मांनूगा।
नरेंद्र बच्ची - पंडित जी, आप ठहरे भावी सरपंच। आप नै तो वैसे ही बहुमत का ख्याल रखना चाहिए।
बागा - ख्याल घोडतू का रखूं। प्रजातंत्र में ना तो गुणों की गुणा-भाग होती है अर् ना वजन की माप-तोल। इसमें तो केवल संख्या का घटा-जोड़ होता है। इसीलिए तो इसमें संख्या बल पर इक्यावन गधों की पच्चास घोडों पर पिलती है।
 

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

चर्चा चुगली-गेहूं की फसल में मांसाहारी कीट- कराइसोपा






कराईसोपा को एक महत्वपूर्ण कीटखोर कीट माना जाता है। इसे हमारी फसलों को हानि पहुँचाने वाले नर्म देह कीड़ों का प्रमुख प्राकृतिक शत्रु  माना जाता है। आमतौर पर इस कीट के प्रौढ़ रात को ही सक्रिय रहते हैं।  रात को रोशनी पर आकर्षित होना इनके स्वभाव में शुमार होता है। हल्कि-हरी झिल्लीदार पंखों वाला यह  कराईसोपा का प्रौढ़ नरम देह प्राणी होता हैं।  इसकी धारीदार पारदर्शी पंखों से इसका पतला सा तोतिया रंगी शरीर साफ नजर आता है। कराईसोपा की कुछ प्रजातियों के प्रौढ़ तो मांसाहारी होते हैं जबकि अन्य के परागकण,मधुरस व नैक्टर आदि पर गुजारा करते हैं। कराईसोपा की सभी प्रजातियों के डिंबक मांसाहारी होते हैं। इस कीड़े की मांसाहारी प्रजातियों के प्रौढ़ व सभी प्रजातियों के डिंबक (शिशु) सफेद-मक्खी, तेला, चेपा, चुरड़ा व मिलीबग आदि हानिकारक कीड़ों के प्रौढ़ों व बच्चों को खाकर जिंदा रहते हैं। ये  कीड़े भाँत-भाँत की तरुण सूंडियों का भी भक्षण करते हैं इस कीट की सिवासण मादाएं प्रजाति अनुसार एक-एक करके या गुच्छों में 600 से 800 तक डंठलदार अंडे देती हैं। अन्य कीटखोरों का शिकार होने से बचने के लिये ही ये अंडे बहुत ही महिन सफेद रंग के रेशमी से डंठलों पर रखे जाते हैँ। अंडों का रंग शुरु में पीला-हरा होता है जो बाद में सफेद तथा फूटने से पहले काला हो जाता है। चार दिन में ही इन अंडों से कराईसोपा के डिंबक निकल आते हैं। ये डिंबक अपने जीवन काल में तीन बार कांजली उतारते हैं। इनके शरीर की लम्बाई 3 से 20 मि.मी. तथा रंग मटमैला-पीला जिसके ऊपर गहरी धारियां भी होती हैं। कराईसोपा के ये डिंबक देखने में तो ऐसे  दिखाई देते हैं जैसे कोई मिनी-मगरमच्छ  हो। इनके जबड़े देखने में दरांतियों जैसे होते हैं। शिकार का खून चूसने के लिये इन जबड़ों की बदौलत ही शिकार के शरीर में सुराख किया जाता है।

इन डिंबकों के भोजन में गजब की विविधता होती है। एक तरफ तो इनके भोजन में मिलीबग, तेले, सफेद-मक्खी, चुरड़े, चेपे व मकड़िया जूँ आदि छोटे-छोटे  कीट होते हैं तथा दूसरी तरफ भांत-भांत की तरुण सूंडियां व विभिन्न कीटों के अंडे भी इनके भोजन में शामिल होते हैं। इनकी यह डिंबकिय अवस्था 15 से 20 दिन की होती है। अपने इस दो-तीन सप्ताह के जीवनकाल में ये डिंबक 100 से 600 तक चेपे(अल) डकार जाते हैं। चेपे खाने के मामले में पेटू  होने के कारण ही शायद इन्हें चेपों का शेर कहा जाता बै। कराईसोपा की प्यूपेसन गोलाकार रेशमी ककून में होती है। कोकून काल 10 से 12 दिन का होता है।




































मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

चर्चा चुगली-गेहूं की फसल में मांसाहारी कीट- सिर्फस मक्खी

सिर्फ़स मक्खी का प्रौढ
 



आंवला के फूलों पर परागकणों का रसास्वादन करते हुए सिर्फस मक्खी का प्रौढ।



जिला जींद में निडाना की धरती पर इस वर्ष रबी के सीजन में गेहूं की फसल पर सिर्फस नामक मक्खियों ने डेरा जमाए रखा ताकि इसके शिशुओं को जिन्हें लोग मैगट कहते है,खाने को भर पेट खाना मिल जाए। इन मक्खियों के बच्चे बड़े चाव से चेप्पा खाते है। इनके प्रौढ सौ नही कई सौ चेप्पे खा कर हज को जाते है। प्रौढ तो सुमनरस अर् परागकण खा पीकर ही गुज़ारा करते है।



गेहूं की फसल में सिर्फस का प्यूपा।



सिर्फस का मैगट सुबह के नाश्ते में चेप्पे निगलते हुए।





सिर्फस का मैगट सुबह के नाश्ते में चेप्पे निगलते हुए।





गेहूं की बाली पर सिर्फस का मैगट व चेप्पे की लाशें।






सरसों के पत्ते पर चेप्पे की कालोनी में सिर्फस का मैगट व अंडा।







गेहूं की बालियों के तुशों पर सिर्फस का अंडा। 








चर्चा चुगली-गेहूं की फसल में मांसाहारी कीट- लेडी बीटल

बसाऊ- इस साल जिला जींद के अपने इस निडाना गावँ में गेहूं की फसल में लेडी बीटल नामक मांसाहारी कीट अच्छी खासी तादाद में देखे गए। किसानों ने इस कीट को बरसीम की फसल में भी देखा है। इस कीट के प्रौढ़ और किशोर (गर्ब) दोनों ही परभक्षी होते है। गेहूं की फसल में, इनके शिकार में अल/चेप्पा, छोटी-छोटी सुंडियां तथा विभिन्न पतंगों के अंडे शामिल होते है। इनके गर्ब, प्रौढों के मुकाबले ज्यादा भूखड होते है। लेडी बीटल के जीवन की चारों अवस्थाए: प्रौढ़, अंडें, गर्ब व प्यूपा के फोटो यहाँ दिए गए हैं। ताकि रतने,बागे अर् बच्ची,थाम सारे किसान इनकी अच्छी तरियाँ पहचान कर सको।


लेडी बीटल का प्रौढ़।
लेडी बीटल के प्रौढ़
लेडी बीटल का प्रौढ़।


गेहूं की बाली पर लेडी बीटल का प्यूपा।



गेहूं की बाली पर सिरफडो मक्खी का मैगट व लेडी बीटल का प्यूपा





गेहूं के पत्ते पर लेडी बीटल का गर्ब
 





गेहूं के पत्ते पर लेडी बीटल का गर्ब व चेप्पे की असंख्य लाश।











लेडी बीटल के नवजात।
































शनिवार, 11 अप्रैल 2009

चर्चा चुगली !

तना छेदक से प्रकोपित पौधे जिनकी बाल सूखी व पत्ताका पत्ते हरे।



समय: हाँडीवार।
स्थान: मलिक पिग्गरी फार्म,निडाना।
पात्र: रतना काला,बसाऊ अर् बागा । आख़िर में नरेंद्र बच्ची भी आग्या।
बसाऊ- रतने,के बात। इब कृषि विभाग अर् कृषि ज्ञान केन्द्र आले तनै किसे भी कार्यकर्म में नहीं बुलाते? मेरा ख्याल सै तनै वे प्रगतिशील की बजाय खूँटा ठोक समझन लाग लिए।
रतन-फेर मैं कद उनकी भातियाँ की ढाल बाट..........
"यू कौन सा चौधर का सवाल सै?"- बीच में ही बागे नै बात घुमाई अक् मनै न्यूँ बता गेहूं किसेक लिकडे।
रतन- पिच्पन मन की औसत आई सै।
"अँ! इतने! तेरे गेहुआं में तो शुरू में भी सुंडी थी अर् आख़िर में भी। इसके अलावा अल भी था। तनै किसे कीटनाशक का स्प्रे भी नहीं करया। फेर भी या कुदरत तेरे ऊपर मेहरबान क्यूकर हुई?"- बागे नै आश्चर्य से पूछा।
रतन- थारै जै याद हो तो अपने गाम का ज्ञानी पागलां की तरिया एक ही बात बार-बार कहें जाया करदा। "जी का जी बैरी अर् मक्खी का घी बैरी॥" इब मेरे या बात सौ की सौ जचन लागी।
बसाऊ- तेरी इस बात में दम सै। मनै ख़ुद अपनी आँख्यां तै लेडी बीटल अर् इसके बच्चे गेहूँ की फसल में अल/चेपा खाते देखे।छोटी छोटी सुंडी अर् अंडे खाते देखे। सिरफडो अर् कराइसोपा के बच्चे अल नै चेपते देखे। और तो और मनै तो इबकै यू चेपा रोग लाग़ कै मरते हुए भी देखा। सफ़ेद सी फफूंद थी जो इस चेपे नै बिलोवै थी। जै खुदा नै खास्ता किसानां नै इन लाभदायक कीड़ों की पहचान हो जा तो कुछ बात बनै।
रतन- बसाऊ। बात तो पूरी भी बन सकै सै जै सही पहचान के साथ साथ हमारा नजरिया भी सही हो तो। इबकै तो गेहूँ की फसल में शुरू तै ऐ सुंडी बैठी सै। या सुंडी धान की तना छेदक सुंडी सै। ललित खेडा वाले तो बल्कि न्यूँ भी कह थे अक् जीरो टिलेज मशीन के प्रचलन कै साथ ही गेहूं में इस कीड़े की शुरुआत हुई सै। राम जानै।कै यूनिवर्सिटी आले जानै। शुरुआत में सुंडी आने के कारण अबकी बार गेहूं नै खूब फूट करी। शुरुआत में कंसुआ लगने पर ईंख भी खूब फूट करा करदा।
बागा बीच में टपका- आ। शुरू में आ जा तो ठीक। पर या फुफनी तो आख़िर तक गडै थी। इस टेम बता या कुणसी फूट करवावैगी?
रतन- इस टेम भी अबकी बार एक नई बात देखन में आई। बालियों की अवस्था में इस तना छेदक का हमला होने पर प्रकोपित टहनी व बाली ही सूखते हैं। सबसे ऊपरवाला पत्ता जिसे हम पत्ताका पत्ता कहते,हरा ही बना रहता है। इसमें बनने वाला भोजन भावी पीढी के लिए विकसित हो रहे दानों में संग्रहित होने के लिए होता है। अत: बालीविहीन इस पत्ताका पत्ते में बना भोजन,पौधे की दूसरी टहनियों की बालियों के दानों में संग्रहित हो जाता। इसका मतलब शेष रहे दानों का वजन बढ जाता है।
इसलिए बागे अर् बसाऊ, डोले पे खड़ा होकै, सूखी बाली देख टोटा फलान का नजरिया इस देश में कीटनाशक कम्पनियाँ अर् डीलरां कै काम आवैगा।
नरेंद्र बच्ची- काका रतने, कदे तो गाम कै गोरे की भी बतला लिया कर। सारी हाण प्रकृति में द्वंद्व ढुँढन ना लागा रहा कर। लाग लपट कै, एक बै तो इन कीड़ों की पहचान ही करवादो किसानां नै।

सोमवार, 6 अप्रैल 2009

बस यूँ ऐ

पौ की पूनम का चाँद पराये प्रकाश से निडाना के आकाश में माघा नक्षत्र ढूँढ रहा था। सुबह शुरू होने वाले माघ महीने में इस सर्दी के मिजाज़ से अनभिज्ञ गेहूं की बालियाँ प्रजनन परीक्षा पास कर बूर के पत्तासे से बाँट रही थी। इन बालियों के पेट में पल रहे दानों के लिए भोजन पकाने का काम दिन में ही निपटा कर, पत्ताका पत्ते आराम फरमा रहे थे। इन्ही पत्तों पर टहलकदमी करते हुए एक गाभरू-गर्ब अपनी माँ लपरो तै न्यूँ बोल्या, " इब बुदापे में छैल-छींट हो कै कित चाल कै जावैगी? इब तेरी उमर के सिंगरण की रहरी सै?"
जवान बेटे कै मुंह तै या बात सुण लपरो का साँस ऊपर का ऊपर अर् तलै का तलै रहग्या। आवेश को अनुभव के आवरण में ढांप , उसने बेटे को बगल में बिठाया। फेर वा प्रेम तै पूछण लागी, "बेटा, एक तो तेरी बालक बुद्धि अर् ऊपर तै गेहूं की फसल में रहना। तनै भूल कै एक आध दाणा गेहूं का तो नहीं चाब लिया ?"
" नहीं ! माँ ! नहीं ! मैं स्प्रे लाग कै मरूं जै मनै यूँ कुकर्म करया हो तो।"
,
गर्ब-गाभरू नै कसम खा कर बात आगै बढाई, "माँ, मनै तो छिक्मां चेपे खाए थे। तरुण सुंडियों की थोड़ी सी चटनी चाटी थी और अण्डों का जूस पीया था।"
 
लपरो- "बस ठीक सै बेटा। गलती तो मेरी ऐ सै। मनै सुन राख्या था अक् जिसा खावै अन्न, उसा होवै मन। तेरे मुहं तै माणसाँ जैसी बात सुनकै मनै सोचा, कदे मेरे बेटे नै भी अन्न खा लिया हो? एक दिन इस निडाना गाम के मनबीर नै भी अपनी माँ तै यही बात पूछी थी। बेटे, मनबीर की माँ बेदो बैसठ साल पहल्यां पीहर की सोलह दीवाली खा कै इस गाम में ब्याहली आई थी। सुथरी इतनी अक् दीवै कै चांदणै में भरथा काला दो घड़ी मुँह देखता रहग्या था। अगले दिन भाभी न्यूँ पूछैं थी अक् आँ हो काले, फेरयाँ आली सारी रात जागा था, के? गाम के ब्याहल्याँ कै मन में मण मण मलाल था अक् थारै इसी सुथरी बहु क्यों नही आई । कल्चर के नाम पै एग्रीकल्चर के रूप में प्रसिद्ध इस हरियाणा में बिटौडां तै बडा कैनवस अर ऊंगलियाँ तै न्यारे ब्रुश कोन्या थे। फेर भी गाम के गाभरूआँ नै भरथे की बहु के रंग-रूप के न्यारे-न्यारे नैन-नक्श मन में बिठान की कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी थी। उसके हाण का एक बुड्डा तो परसों भी न्यू कहन लाग रहा था अक् दिनाँसर तो भरथे की बहु की घिट्टी पर को पानी थल्स्या करदा। रही बेदो के हुनर की बात, उसके मांडे अर् गाजर-कचरियाँ के साग का जिक्र पीहर अर् सांसरे में समान रूप से चलै था। बसलुम्भे से बनी उसकी फाँकी नै सारा गाम पेट दर्द में रामबाण माना करदा। कवथनांक एवं गलणाँक की परिभाषा से अपरिचित बेदो टिंडी ता कै निथारन की माहिर थी। के मजाल चेह्डू रहज्या। उसके हाथ का घाल्या घी किस्से नै ख़राब होया नहीं देखा। काम बेदो तै दो लाठी आगै चाल्या करदा। उठ पहर कै तड़के वा धड़ी पक्का पीसती व दूध बिलोंदी। रोटी टूका कर कै गोबर-पानी करदी। कलेवार तक इन सरे कामा तै निपट कै खेत में ज्वारा पहुँचांदी। वापिस घर पहुँच कै एक जोटा मारदी सोण का। जाग खुलते ही पीढा घाल कै दो ढाई बजे तक आँगन में बैठ जांदी। इस टेम नै वा अपना टेम कहा करदी। इस टेम में वा गाम की बहु-छोरियां नै आचार घालना, घोटा-पेमक लाणा व क्रोसिया सिखांदी। इसी टेम कुणक अर् कांटें कढवान आले आंदे। सुई अर् नकचुन्डी तो बेदो की उँगलियाँ पर नाच्या करदी। तीन बजे सी वा खूब जी ला के नहाया करदी। मसल मसल कै मैल अर् रगड़ रगड़ कै एडी साफ़ करदी। उसनै बेरया था अक् ओल्हे में को आखां में सुरमा, नाक में नाथ अर् काना में बुजनी, किसे नै दिखनी कोन्या। फेर भी वा सिंगार करन में कोई कसर नहीं छोड्या करदी। बराबराँ में कट अर् काख में गोज आले कुर्त्ते कै निचे पहरे बनियान नै वा सलवार तले दाबना कदे नहीं भुल्या करती। आख़िर में आठूँ उँगलियों से बंधेज पर खास अलबेट्टा दे कर सलवार नै सलीके सर करदी। बन ठन कै इब वा चालदी पानी नै। उसकी हिरणी-सी चाल नै देख कै रस्ते में ताश खेलनिये पत्ते गेरने भूल जांदे अर् न्यून कहंदे या चली भरथे की बहु पानी नै।", बेटे से हुंकारे भरवाते हुए लपरो नै आगै कथा बढाई, " बस बेटा, एक या ऐ बात थी जो भरथे नै सुहाया नहीं करदी।"
एक दिन मौका सा देख कै बेदो नै समझावण लाग्या अक् मनबीरे की माँ इब तू दो बालकाँ की माँ हो ली। इस उम्र में सादा पहरणा अर् सादा रहणा ऐ ठीक हो सै।
या सुन कै बेदो की हँसी छुट गई। अपनी इस बेलगाम हँसी को काबू कर बेदो नै मुस्कराते हुए,पहला सवाल दागा, "मनबीरे के बाबु, मनै बारह बरस हो लिए इस गाम में आई नै। आज तक कदे किसे की फी में आई?"
"ना। मनबीरे की माँ। ना।", कहन तै न्यारा कोई जवाब नहीं था भरथे के धोरै।
उसकी की इस ना से उत्साहित हो बेदो नै उल्हाना दिया, " जायरोए , टुम-टेखरी घडाणी तो दूर कदे दो मीटर का टुकड़ा भी ल्या कै दिया सै के?"
" ना। मनबीरे की माँ। ना।",भरथे की कैसट उलझ गई थी।
" कदे, तेरै घर के दानें दुकानां पै गेरे?",-बेदो रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
" ना। मनबीरे की माँ। ना। इब क्यूँ जमा पाछै पडली। मनै तो बस न्यूँ ऐ पूछ लिया था।" - भरथे नै बेदो को टालण की सोची।
बेदो- " तेरी इस बस न्यूँ ऐ नै तरली गोज में घाल ले। मनै बेसुरापन कोण सुहावै।"
बेदो का वजूद भरथे पै घना भारी पडै था। मन-मसोस कै रहग्या। दिनां कै दिन लाग रे थे अर् दिनां सर , बेदो नै छोरे ब्याह लिए। पोते-पोतियाँ आली होगी। पर बेदो की दिनचर्या अर् रहन-सहन का सलीका वही रहा। हाँ, बहुआं नै उसका पानी भरने का काम तो छुड़वा दिया था। इब हाण्डीवार सी बेदो नहा धो कर साफ सुथरे कपड़े पहन खेतां में घुम्मन जान लगी। बेटा, बेदो का यू सलीके सर रहना ना तो कदे भरथे नै भाया अर् ना इब ख़ुद के जाया नै सुहाया। एक दिन मौका-सा देख कै मनबीर माँ कै लोवै लाग्या। हिम्मत सी करके बोल्या अक् माँ, इस उमर में .................. ।
" बस बेटा। बस। समझ गई।"- कह कै बेदो नै बेटे की बात कै विराम लगा दिया। अर् न्यूँ पूछन लागी, "बेटा, थारा किम्में फालतू खर्चा कराऊ सूं? "
" ना। माँ। ना।"-मनबीर नै भी बाबू की पैड़ा में पैड़ धरी।
बेदो - " थारी बहुआँ नै नहान धौन तै बरजू सूं?"
ना! माँ! ना! - मनबीर नै जवाब दिया।
थारी बहुआँ नै साफ सुथरा पहरण तै नाटु सूं? - बेदो का बेटे से अगला सवाल था।
मनबीर - ना! माँ ! ना!
" सोलाह की आई थी, छियासठ की हो ली। इन पच्चास सालों में आडै किसे कै उलाहने में आई हों? कदे मेरे पीहर तै कोई बात आई हो? " - बेदो इब और खोद-खोद कै पूछन लगी।
मनबीर थूक गिटकते होए बोल्या - ना ! माँ! ना!
बेटा, अब बाजी बेदो के हाथ में थी वा बोली - फेर मेरे इस साफ सुथरा रहन पै इतना रंज क्यों?
नीचे नै नजर कर कै मनबीर नै बस इतना ही कहा - बस ! माँ ! बस ! न्यूँ ऐ ।
बेदो - "बेटा। थारा बाप भी इस "न्यूँ ऐ" की गोज भरे हांडै सै अर् इब थाम नै झोली कर ली। मनै तो मर्दाँ की इस "न्यूँ ऐ" अर् "रिश्तों" की थाह आज तक ना पाई।"
बेदो की आपबीती अपने बेटे गर्ब तै सुणा,
लपरो उसने न्यूँ समझावन लागी - "मेरे गर्ब-गाभरू, इन माणसां कै समाज के रिश्ते तो पैदावारी सै। उलझ-पुलझ इनकी पैदावार, उलझ-पुलझ इनके रिश्ते-नाते और उलझ-पुलझ इनकी मानसिकता। यें भाई नै सबतै प्यारा बतावै अर् सबतै फालतू झगड़े भी भाईयाँ गेल करै। रायचंदआला के रूहिल गाम में भाईयाँ गेल बिगाड़ कै रोहद के रूहिलां में भाईचारा ढुँढते हांडै सै। घर, कुनबे, ठौले व गाम गेल बिघाड कै सिरसा में जा समाज टोहवै सै। और के बताऊ इनका किसानी समाज तो इसा स्याणा सै अक् बही नै तो सही बताया करै अर् घट्टे बीज नै बढा। बेटा, यें ऊत तो कीडों की बीजमारी कै चक्कर में अपनी बीजमारी का जुगाड़ करदे हाँडै सै।
इस लिए मेरे गाभरू आज पीछे इन माणसाँ की छौली अर् इनके कीटनाशकोँ तै बच कै रहिये। जब भी कोई मानस नजदीक आवै, ऊँची आवाज़ में गीत गाना शुरू कर दिया कर अक् .............

कीटाँ म्ह के सां कीटल
या जाणे दुनिया सारी ॥
अँगरेज़ कहें लेडी बीटल
 
लपरो  हमनै  कहें बिहारी ॥
जींद के बांगरू कहँ जोगन
खादर के म्हाँ मनियारी ॥
सोनफंखी भँवरे कहँ कवि
सां सौ के सौ मांसाहारी ॥ "




















शुक्रवार, 27 मार्च 2009

बी.टी.का ब्याह !

चैत की चौदस का चाँद पूर्वी आसमान में डिग्गी से ऊपर चढ लिया था। पर मलिक पिग्गरी फार्म में अपने पशुओं के रुखाली रतने का टेम पास होने का नाम नही ले रहा था। रतन की गिनती गाम के पुराने पापियाँ में हो सै। उन्निसौ तिएतर का बी.ए. पास सै। एक योजना गाम का सरपंच भी रह लिया। कृषि विभाग अर विज्ञान केन्द्र आला की नजर में प्रगतिशील किसान भी रह लिया। रतन की इस खास पहचान में गुणों पर रंग हमेशा भारी पड़ता रहा। इसीलिए तो गाम का चूची बच्चा भी रतन को रत्ना काले के रूप में जानता है। तीव्र रंग विरोधाभास के कारण ही आज बसाऊ अर बागे पंडित नै रत्ना काला रिंग बाँध पर तै दिखाई दे गया। अपने यारों के कदमों की आहट से उर्जावान व चाँद की मार्फत मिली सूरज की रश्मियों से दैदीप्मान रत्ना काला तुर्ताफुर्ती कमरे में गया और अगले ही क्षण हाथ में कुछ लिए वापिस चारपाई पर जम गया। जब तक भूतपूर्व सरपंच बसाऊ व भावी सरपंच बागा रतन के पास पहुचते,वह लालपरी को तिन गिलासों में डाल चुका था। ना दुआ सलाम अर ना उलाहना-मीणा। बस तीनों ने चुपचाप गिलास उठाकर आपस में टकराए। एक साथ चियर्स कह कर चुपी तोड़ने का सामूहिक रूप से सार्थक प्रयास किया। पुरा पैग हल्क में तार,रतने नै पूछा आज दिन में कित गडो थे? "आज तो, जींद उत्सव होटल में थे। बी.टी.का ब्याह था। कम्पनियों के क्षेत्रीय प्रबंधकों ने बिटिया बी.टी.की शादी जींद आकर करी सै। रिसेप्सन का सारा खर्चा कृषि विभाग नै ठा राख्या था। नौन्दा-निंधारी विभाग के कर्मचारी अर जिले के प्रगतिशील किसान थे। खाना के गजब......"
"कदे? काम की भी बतला लिया कर, " रतने नै बागे को बीच में ही टोका था।
बसाऊ पै भी चुप नहीं रहा गया, "और तो किम्में बात नहीं रतने, बीज आधुनिक, कंपनी आधुनिक, तकनीक आधुनिक, ब्याह करनीयें आधुनिक पर परम्परा पुराणी। दुल्हन बी.टी.स्टेज पर घूँघट काढ कै बिठा राखी थी। बी.टी.का परदे में रहना कानूनी रूप में लाजिमी बतावै थे। कानून भी कोई इ.पी.ए.1986 बतावैं थे। परम्परा और पैदावार का यु अंतरविरोध, म्हारै हज़म नहीं होया।"
रतना - " फेर तो जरुर किम्में रोल सै? इसपै किम्में सवाल-जवाब नहीं होए।"
बागा - "खूब होए, होए क्यूँ नहीं?